Thursday, March 1, 2012

आंतरराष्ट्रीय महिला दिवस


आंतरराष्ट्रीय महिला दिवस

आज हम आंतरराष्ट्रीय महिला दिवस मनानेकी दूसरी सदीमे प्रवेश कर चुके है. पूरे १०१ साल से विश्वभर में इसे मनाया जा रहा है ताकि महिलाओंको समाजमे बराबरीका दर्ज़ा मिल सके. महिलाओंकी भागीदारी, समानता और विकासके आधारपरही विश्व शान्ति, सामाजिक विकास, मानव अधिकार और मूलभूत हकोंको हासिल किया जा सकता है. इस दिन को मनाकर हम वैश्विक शान्ति और सुरक्षा को मज़बूत करनेके संघर्ष में महिलाओंके महत्त्वपूर्ण योगदान को भी मान्यता देते है. इसे हम महिलाओंको संगठित करनेके और बदलाव के लिए उन्हें आगे लाने के एक मौके के रूप में भी देख सकते है. दुनियाभरमे इस दिन महिलाएं अपने संघर्ष, अपनी पहचान बनानेकी लड़ाई और उपलाब्धियोंका मूल्यांकन करने के लिए एक साथ आती हैं. इसी दिन वे अपने आनेवाले संघर्षोंके संकल्प भी करती हैं.

आंतरराष्ट्रीय महिला दिवस का इतिहास

१९०८ में न्यूयार्क में महिला मजदूरों ने अपनी काम की परिस्थितियोंको सुधारने की मांग को लेकर पहली बार हड़ताल किया था. इस हड़ताल को सम्मानित करने और मजदूर महिलाओंके संघर्ष को मज़बूत करनेके लिए १९०९ में अमरीका में पहला राष्ट्रीय महिला दिवस मनाया गया. उसके अगले साल ही कोपेनहेगेन में हुए विश्व समाजवाद सम्मेलन में एक आंतरराष्ट्रीय स्तर का महिला दिवस मनानेका प्रस्ताव रखा गया जिसका मकसद था महिलाओंके हक और मताधिकारकी लड़ाई को पूरे विश्व स्तर पर मज़बूत करना. इस सम्मेलन में इस प्रस्ताव को जोरशोर से पारीत किया गया. पहली बार १९११ में इसे पूरे योरोप और अमरीका में १० लाख से भी ज्यादा महिला और पुरुषोने मनाया. उसके बाद हर साल अलग अलग मुद्दोंको लेकर उसे मनाया जाता रहा. कभी युद्ध के खिलाफ तो कभी समाजवादी क्रान्तिको समर्थन देनेके लिए महिलाएं इस दिन साथ आती रही और अपनी एकजुटता का प्रदर्शन कराती रही.

१९७४ तक ८ मार्च को आंतरराष्ट्रीय महिला दिवस मनाने का सिलसिला समाजवादी देश, कमुनिस्ट पार्टियाँ और फेमिनिस्ट संगठनोतक सीमित था मगर १९७५ में उसमे एक और आयाम जुड़ गया. युनायटेड नेशंस ओर्गानायज़ेशन ने यह साल आंतरराष्ट्रीय महिला वर्ष के रूपमे मनानेका निर्णय लिया और विश्वभर में सभी देशोमे सरकारी और गैर सरकारी पैमानेपर सालमे अन्य कार्यक्रमोंके साथ साथ ८ मार्च भी बड़े जोरशोरसे मनाया गया.

१९७५ से ही देश के कुछ बड़े शहर, जैसे दिल्ली, मुंबई, कोलकत्ता, चेन्नई, अहमदाबाद, पुणे में यह दिवस सभी पुरोगामी, धर्मनिरपेक्ष महिला संगठन और संस्थाओं ने साथ आकर मनानेकी शुरुआत की जिसका चलन आजतक कायम है. हर साल आंतरराष्ट्रीय, राष्ट्रीय, राज्य और अपने शहर के स्तर पर कुछ ख़ास मुद्दोंपर जोर देकर आनेवाले दिनोमे संघर्ष जारी रखनेका संकल्प इस दिन लिया जाता है. अभीतक जो मुद्दे उठाए गए है वे इस प्रकार हैं, दहेज़ उत्पीडन, महिलाओंपर होनेवाले लैंगिक अत्याचार, युद्ध और आक्रमण, साम्राज्यवाद, सती जैसी सामंती कुप्रथाएं, शिक्षा का अधिकार, अन्न सुरक्षा और महंगाई, महिलाओंके लिए सभी स्तर पर राजनैतिक आरक्षण, पारिवारिक हिंसा के खिलाफ क़ानून, वैश्वीकरण के महिलाओंपर होनेवाले असर, जातिवाद, फासीवाद, धार्मिक और वांशिक कट्टरवाद, आतंकवाद के हमलोंमे होनेवाले अत्याचार, महिलाओंके लिए उपलब्ध रोज़गार, असंगठित महिला मज़दूरोके लिए सामाजिक सुरक्षा, कामकी जगह होनेवाले लैंगिक उत्पीडन के खिलाफ कारगर क़ानून, महिलाओंके स्वास्थ संबधी सवाल, गरीबोंकी बस्तियों में और सार्वजनिक जगहोंपर महिलाओंके लिए सुविधांए, कम होनेवाला लिंग अनुपात, प्रतिष्ठा के नामपर होनेवाले हिंसाके खिलाफ क़ानून आदि.

२००८ से २०११ तक हर साल हमने १०० साल पहले हुए महत्वपूर्ण संघर्ष और निर्णयोंकी शाताब्धि मनाई. हर बार हमने अपने आपसे ये सवाल पूछा की महिलाओंकी ऊपर दी गई समस्याओंसे जुझनेमे हम कहाँतक कामयाब हुए है? क्या इन समस्याओंको हम कुछ हद तक हल कर पाए हैं? या फिर पूरानी समस्याओंको हल करनेके बजाय इस व्यवस्थाने नयी समस्याओंको जन्म दिया है? संघर्षके इस दूसरी सदी में प्रवेश करते समय हमें हर साल की तरह एक साल या एक दशक के नहीं बल्कि पूरे १०० सालकी उपलब्धियों का मूल्यांकन करना है. इन १०० सालोमे हमने विश्व के अनेको अनेक देशोमे स्वाधीनता संग्रामोंको देखा जिसमे महिलाओंने बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया. लोगोंका साम्राज्यवादी और सामंती सत्ताको पीछे हटाते हुए जनवाद की स्थापना के लिए संघर्षभी देखा जिसमे महिलाओंकी भागीदारी उल्लेखनीय रही है. लगभग आधी दुनिया में हुई समाजवादी क्रान्तिओंको देखा जिसमे महिलाओंके सम्मान और अधिकारोंके मुद्दोंको अहमियत दी गयी. दुनियाभरमे चल रहे प्रगतिशील सामाजिक, राजनैतिक और सांस्कृतिक आन्दोलनोंको देखा जिसका एक अहम् मुद्दा था महिलाओंके समान अधिकार. एक समय ऐसा था की हमें यह एहसास हो रहा था की महिलाओंकी लड़ाई आगे बढ़ रही है. समानता, स्वतंत्रता, सम्मान और सुरक्षा पानेकी जद्दोजेहद में और समाजको बदलनेके संघर्षमे हम आगे बढ़ रहे है मगर पुरे विश्व में ऐसी परिस्थितियां पैदा हुई की हालात बद से बदतर हो गए. पूंजीवादी, साम्राज्यवादी ताकदों ने बढ़ते हुए समाजवाद को परास्त करने के लिए धार्मिक कट्टरवाद, अलगाववाद और आतंकवाद को बढ़ावा दिया, प्रगतिशील विचारधारा की जगह तालिबानी विचारधाराको जानबूझकर तर्जी दी गयी. जिसके चलते एक तरफ आतंक, हिंसा, दंगोंको बढ़ावा मिला तो दूसरी तरफ सामंती कुप्रथाओंको पुनर्जीवन मिल गया. लड़कियोंके जन्म लेनेके, शिक्षाके, शादीके मामलेमे निर्णय लेनेके अधिकारोंको सीमित करनेका षड़यंत्र रचाया जाने लगा. लोगोमे वैश्वीकरण केखिलाफ बढते हुए आक्रोश को दबाने के लिए धर्म, जाती, वंशकी भावनाओंको हथियार के तौरपर इस्तेमाल किया गया. गरीबी, भुखमरी, महंगाई, अशिक्षा, बेरोज़गारी के लिए ज़िम्मेदार पूंजीवाद और साम्राज्यवाद के खिलाफ लोगोंके संघर्षको नाकाम करनेके लिए उन्हें धार्मिक पुनर्जीवन के मुद्दोंमे उलझाकर रखा गया. इसी भावनाको हवा देनेके कारणही समाजके सामंती सोचमें बढ़ोतरी हुई जिसके भयंकर परिणाम अब दिखने लगे है. सामंती संस्कृति को पूंजीवाद के फायदेके लिए इस्तेमाल किये जानेकी वजहसे हमारे जिंदगीके अलग अलग पहलुओंपर असर हुआ है. सामंती सोच और पूंजीवादी तकनीक और तरीकोंके मिलापसे आजके इस भयानक सामाजिक व्यवस्थाका नए सिरेसे जन्म हुआ है. उदाहरण के तौरपर सामंती समाजके पुत्र प्राथमिकता को गर्भलिंग पहचाननेकी नयी तकनीक से जोड़ा गया जिसके परिणाम स्वरुप लड़कियोंकी संख्यामे भारी गिरावट आई है. सामंती दहेज़ प्रथा के साथ पूंजीवादी व्यवस्थाके उपभोक्तावाद के जुड़ जानेसे बहुको दहेजके नामपर बाजारके नए उत्पादन घरमे लानेवाले व्यक्तिके रूपमे देखा जाने लगा जिसके कारण दहेज़ उत्पीडन और घरेलु हिंसा में बढ़ोतरी हुई. तालिबानी सोच बढ़ने के कारण परिवारके सम्मान के नामपर हुई हत्याएं और जातिके नामपर होनेवाले अत्याचारोंमे भी बढ़ोतरी हुई है.

इस सालके आंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर हमें ना ही इन समस्याओंसे जूझना है बल्कि उनका विश्लेषण करते हुए उनके इस व्यवस्थामे गहराई तक बसे जड़ों तक भी पहुँचना होगा. कोई भी समस्या उपरी तरीकोंसे हल नहीं होगी. उसे निर्माण करनेवाली व्यवस्था को जड़ से बदलना होगा. इसी व्यवस्था परिवर्तन की लड़ाई में ज्यादा से ज़्यादा महिलाओं को सम्मिलित करनेके लिए उन्हें संगठित करना और हर समस्याके सामाजिक, राजनैतिक पहलु का सही ढंग से अध्ययन करते हुए उनसे जुझनेकी क्षमताको विकसित करना यह एक बड़ी चुनौती हमारे सामने है. चलिए इस चुनौती का स्वीकार करते हुए हम सामंतवाद, साम्राज्यवाद, पूंजीवाद, पुरुष सत्ता, जातिवाद, कट्टरवाद, आतंकवाद और गैर बराबरी के खिलाफ लड़ी जा रही जंग के लिए कटिबद्ध हो जाये. हम कटिबद्ध हो जाये एक ऐसे समाज के निर्माण के लिए जिसमे कोई अन्याय ना हो, अत्याचार ना हो, हिंसा ना हो, शोषण ना हो; जिसकी बुनियाद हो आपसी प्यार, भाईचारा, सहकार, सम्मान और समानता.

1 comment:

  1. Shubha Shamim is a curious name. Are you Hindu or Muslim? I suppose you are a Hindu married to a Muslim. In that case, have you brought up your kids as Hindu?

    ReplyDelete